आज हमारा देश एक बहुत ही विभाजित और अस्थिर दौर से गुजर रहा है।
सरकारों ने धर्म] जाति और भाषा के नाम पर जनता के मन में अविश्वास और भय के बीज बो दिए हैं।
कभी हिन्दू-मुस्लिम कभी ब्राह्मण-शूद्र कभी उत्तर-दक्षिण —
हर स्तर पर हमें एक-दूसरे से अलग दिखाने की कोशिश हो रही है।
पर क्या यही भारत की आत्मा है
वह भूमि जिसने “वसुधैव कुटुम्बकम्” का संदेश दिया, आज छोटे-छोटे खानों में बँटती जा रही है।
यह स्थिति केवल राजनीति की नहीं, बल्कि हमारे मनों की भी बीमारी है।
🕊️ मन की क्रांति की आवश्यकता
पिछले 7 वर्षों से मैं लगातार एक ही कार्य में लगा हूँ —
लोगों के मन से यह मंदिर-मस्जिद, जात-पात का अंधकार मिटाने का प्रयास।
मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि मनुष्य फिर से मनुष्य को पहचाने,
एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान और अपनापन महसूस करे।
कुछ लोग मेरी बातों को सहर्ष स्वीकार करते हैं,
पर कुछ कट्टर और अंधभक्त मनोवृत्ति वाले लोग इसे समझ नहीं पाते।
उनके लिए प्रेम की भाषा अब अपरिचित हो चुकी है।
वे “धर्म” के नाम पर वही करते हैं, जो उनके भीतर के भय और घृणा उन्हें सिखाते हैं।
🌼 प्रेम ही सच्चा धर्म है
हमें यह समझना होगा कि प्रेम ही सबसे बड़ा मंदिर है, करुणा ही सबसे सच्ची मस्जिद।
जब तक हम एक-दूसरे के प्रति स्नेह, क्षमा और सम्मान का भाव नहीं रखते,
तब तक कोई भी पूजा, कोई भी इबादत अधूरी है।
प्रेम कोई मत या पंथ नहीं —यह मानवता की आत्मा है।
जब मनुष्य का हृदय प्रेम से भरता है,तभी वह सच्चे अर्थों में धार्मिक बनता है।
🌞 आशा की नई सुबह
हमें अपने बच्चों को घृणा नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व की शिक्षा देनी होगी।
हमें अपने समाज को डर से नहीं, विश्वास और संवाद से जोड़ना होगा।
यदि हम सब मिलकर प्रेम के इस छोटे से बीज को बोएँ, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक शांत, करुणामय और एकजुट भारत देख सकेंगी।
