क्रांति की शुरुवात एक बच्चे को दूध पिलाती माँ से होती है।

क्रांति की असली जड़ें किसी महल या किसी संसद के गलियारे में नहीं

बल्कि प्रत्येक घर के रसोई में, उस माँ के हाथों में, और बच्चे की आँखों में हैं। जब माँ अपने नन्हे से बच्चे को दूध पिलाती है, तो उसके भीतर जीवन की रक्षा की अदम्य इच्छा जगती है — और वही इच्छा जब जुड़ जाती है सामूहिक आत्मसम्मान से, तब बनती है सच्ची क्रांति। ऊँचे-ऊँचे नारे और चमकीली सूचनाएँ मायने नहीं रखतीं अगर धरातल पर लोगों के पेट और आत्मसम्मान की लड़ाई नहीं जीती जा रही।

इतने सैंकड़ों सालों में तुम्हें बार-बार धोखा दिया गया —

कभी पराधीनता, कभी आंतरिक शोषण। हर बार तुमने किसी और से उम्मीद लगाई कि वह तुम्हें अधिकार दिला देगा। ६० साल किसी एक परिवार को बीते और जनता ने सोचा कि अब देश का भला होगा। फिर १७ साल किसी नई उम्मीद को दिया गया—पर क्या बदला? सिर्फ़ राशन की दरकार से कभी सम्मान नहीं मिलता। सम्मान तो तुम्हें अपने हाथों से ही लेना होगा।

तुम्हारी संख्या ७५% से अधिक है

— यह कोई आंकड़ा नहीं, यह शक्ति है। पर सत्ता की बनावट ऐसी है कि तुम्हें हिस्सेदारी में घुसी हुई सीमाएँ ही मिलती हैं। आरक्षण मिला तो क्या हुआ, जब समाज के कुछ हिस्से तुम्हें हीन दृष्टि से देखने लगते हैं? यही समय है इस धारणा को तोड़ने का कि अधिकार मांगकर ही मिलते हैं। अधिकार तो तभी टिकेगा जब तुम्हारे हालात बदलेंगे — शिक्षित, संगठित और स्वाभिमानी बनकर।

क्रांति का मतलब हिंसा नहीं, बल्कि जागृति है।

यह जागृति हर एक घर से शुरू होती है — माता का आत्मविश्वास, पिता की सीख, बेटों और बेटियों की संवेदनशीलता। अगर तुम बच्चों को यह सिखाओगे कि वे सिर उठाकर जियो, अपने अधिकार जानो, और अपने अस्तित्व का मान रखो, तो समाज अपने आप बदल जाएगा। यह शिक्षा स्कूलों तक सीमित नहीं होनी चाहिए; यह घर की संस्कृति बननी चाहिए।

तैयार रहो

— यह तैयारियाँ मात्र मार्च और नारे नहीं हैं। यह आर्थिक आत्मनिर्भरता, कानूनी जागरूकता, शैक्षिक अवसर और राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि है। अपने आसपास के लोगों को समझाओ, छोटे-छोटे सहकारी संघ बनाओ, स्थानीय समस्याओं का संग्रह करो और सामूहिक रूप से आवाज उठाओ। हर गाँव, हर वार्ड, हर मोहल्ले में एक छोटी लेकिन संगठित इकाई बनाओ जो मुद्दों को चिन्हित करे और समाधान के लिए दबाव बनाए।

कभी भी मत सोचो कि कोई अन्य बाहरी बल तुम्हारे लिए युद्ध लड़ देगा। असली शक्ति तुम्हारे भीतर है — तुम्हारी संख्या, तुम्हारा धैर्य और तुम्हारा विवेक। जब यह शक्ति संगठित होगी, तो कोई भी व्यवस्था इसे दरकिनार नहीं कर पाएगी। इतिहास में जितनी भी स्थायी सामाजिक पहिचानें बनीं, वे तब बनीं जब लोग अपने निजी दु:ख से उठकर सामूहिक अधिकार के लिए खड़े हुए।

आज ही कदम उठाओ

— अपने घर से बाहर निकलो, अपने पड़ोसी से बात करो, अपने बच्चों को स्वाभिमान सिखाओ। रोटी के साथ-साथ गरिमा भी मांगो। किसी भी चुनाव में अपना मत सिर्फ वादों पर न दो; उसे बदलने की शक्ति समझो और संघ बनाकर मांगों को दर्ज कराओ। जब तुम हर स्तर पर सक्रिय हो जाओगे—ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक—तब बदलाव अवश्य होगा।

क्रांति की शुरुआत हमेशा छोटे-छोटे कदमों से होती है

— एक माँ का दूध, एक शिक्षक की प्रेरणा, एक युवा की हिम्मत। आज वही समय है जब तुम्हें उठकर बोलना है: अब और नहीं। क्या तुम सारी जिंदगी सिर झुकाकर जीना चाहोगे, या आज से ही अपने बच्चों के लिए नया सूरज उगाओगे? चलो — एक कदम मेरे साथ बढ़ाओ, और इस देश की सच्ची क्रांति की सबसे पहली चिनगारी बनो।

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